चण्डीगढ़ : सर्वोच्च न्यायालय और नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) के निर्देशनुसार पंजाब सरकार द्वारा अगले विधानसभा सत्र में वृक्ष संरक्षण अधिनियम-2025 लाया जाना प्रस्तावित है। पर्यावरण को समर्पित वटरुख फाउंडेशन, चण्डीगढ़ एवं प्रदेश में सक्रिय अनेक पर्यावरणविदों का कहना है कि सरकार द्वारा प्रस्तावित उक्त वृक्ष संरक्षण अधिनियम अधूरा है। चण्डीगढ़ प्रेस क्लब में आयोजित एक प्रेस वार्ता में सुधि पर्यावरणविदों ने उक्त मुद्दा उठाते हुए कहा कि पंजाब एक गंभीर पर्यावरणीय संकट का सामना कर रहा है, और यह अत्यंत खेदजनक है कि ये अधिनियम कई अहम पहलुओं से रहित है।
वटरुख फाउंडेशन की संस्थापक निदेश समीता कौर ने समीता कौर ने कहा कि इतिहास में पंजाब को इसकी उपजाऊ ज़मीन और समृद्ध प्राकृतिक परिदृश्य के लिए जाना जाता था, परंतु आज यह राज्य शहरीकरण, औद्योगीकरण, बुनियादी ढांचे के विस्तार और अति-कृषि के चलते बड़े पैमाने पर वृक्षों की कटाई, वनों की समाप्ति और हरित क्षेत्र के नुकसान से जूझ रहा है। इसका सीधा असर वायु प्रदूषण, गिरते भूजल स्तर, मिट्टी के कटाव, जैव विविधता के नुकसान और नागरिकों के स्वास्थ्य पर पड़ रहा है। 2001 से 2023 के बीच पंजाब का वन क्षेत्र 4.80 फ़ीसदी से घटकर 3.67 फ़ीसदी तथा वृक्षों का आच्छादन क्षेत्र 3.20 फ़ीसदी से घटकर 2.92 फ़ीसदी ही रह गया है यानी कुल हरित क्षेत्र अब महज 6.59 फ़ीसदी ही रह गया है।
इस स्थिति से निपटने के लिए एक मजबूत व प्रभावी वृक्ष संरक्षण अधिनियम-2025 लागू होना जरूरी है। एनजीटी ने सरकार को स्पष्ट निर्देश दिए हुए हैं कि वह निजी भूमि, शिकायत निवारण प्रणाली और वृक्षों की जनगणना जैसे कमज़ोर पहलुओं को 8 अक्टूबर 2025 तक संशोधित करे, ताकि इसे नवंबर 2025 में विधानसभा में पेश किया जा सके।
प्रेस वार्ता में पंजाब भर से पर्यावरणविद् और नागरिक समाज के सदस्य शामिल हुए जिनमें प्रदेश में पर्यावरण के क्षेत्र में कार्यरत्त जानी-मानी हस्तियां डॉ. मंजीत सिंह, कर्नल जसजीत सिंह गिल और इंजीनियर कपिल अरोड़ा मुख्य वक्ताओं में शामिल थे। इनके अलावा इंदु अरोड़ा, स्वर्णजीत कौर, गुरप्रीत पलाहा, पल्लवी कपूर, अमनदीप सिंह, पविला बाली, कैप्टन विक्रम बाजवा, अलीशा बंसल एवं तेजवीर सिंह आदि भी मौजूद थे।
इन सभी ने पिछले महीने मानसून सत्र के दौरान मुख्यमंत्री भगवंत सिंह मान, विधानसभा अध्यक्ष कुलतार सिंह संधवां, विपक्ष के नेता प्रताप सिंह बाजवा व मुख्य सचिव एवं अन्य मंत्रियों व विधायकों को एक ईमेल अभियान के माध्यम से इस संबंध में मसौदा विधेयक भी भेजा था।
पर्यावरण कार्यकर्ता तेजस्वी मिन्हास, जिन्होंने एनजीटी में याचिका दायर की थी, ने कहा कि देश के लगभग 12 राज्यों में वृक्ष संरक्षण अधिनियम है, पर पंजाब में न तो कोई अपीलीय निकाय है, न ही कोई ऐसी प्रणाली जहाँ वृक्षों की कटाई, छंटाई आदि से संबंधित शिकायतों का समाधान हो सके। अतः एक व्यापक वृक्ष अधिनियम की आवश्यकता है।
इंजीनियर कपिल अरोड़ा ने कहा कि प्रस्तावित अधिनियम में ग्रामीण क्षेत्रों को शामिल नहीं किया गया है जबकि पंजाब का 90 फीसदी भूभाग ग्रामीण है। अधिनियम पूरी तरह शहरी क्षेत्रों पर केंद्रित है। इसमें कृषि वानिकी और कार्बन क्रेडिट जैसी बातों का भी अभाव है। कई प्रयासों के बाद भी तथा नागरिकों द्वारा लगातार माँग के बावजूद अधिनियम अधूरा है।
डॉ. मंजीत सिंह ने कहा कि इस प्रस्तावित अधिनियम में विरासती वृक्षों (हेरिटेज ट्रीज़) का कोई उल्लेख नहीं है। किसी वृक्ष को विरासत वृक्ष के रूप में वर्गीकृत करने के लिए उसका आकार, रूप, रंग, आयु, दुर्लभता, तथा उसका सांस्कृतिक या ऐतिहासिक महत्व महत्वपूर्ण होते हैं।
पर्यावरणविदों के अनुसार, एक और विरोधाभास यह है कि एक वृक्ष की कटाई के बदले दो वृक्ष लगाने का प्रस्ताव है, जबकि 2024 की नीति में पाँच वृक्ष लगाने की बात थी। वास्तव में यह संख्या कम से कम 15 होनी चाहिए थी। इसके अलावा सबसे चिंताजनक बात यह है कि सरकार के प्रस्तावित विधेयक में कारावास का प्रावधान ही नहीं है।
कर्नल जसजीत सिंह गिल ने बताया कि वे बार-बार पंजाब सरकार को समयबद्ध वृक्ष जनगणना और जियो टैगिंग के लिए लिख चुके हैं। यह समय की सबसे बड़ी आवश्यकता है, जिससे वृक्षों की देखरेख और जवाबदेही सुनिश्चित की जा सके।
सभी ने एक स्वर में कहा कि पंजाब एक पर्यावरणीय आपातकाल की स्थिति से गुजर रहा है। चूंकि कानून रोज़ नहीं बनते, इसलिए यह आवश्यक है कि सरकार पर्यावरणविदों और सिविल सोसाइटी से विचार-विमर्श कर एक व्यापक और प्रभावी वन संरक्षण अधिनियम 2025 तैयार करे, जिससे पंजाब को इस संकट से उबारा जा सके। इसके अलावा चिंचित पर्यावरणविदों ने राज्य में हरित क्षेत्र को बढ़ाने के लिए पेड़ों के लंगर व छबीलें लगाने की योजना पर चर्चा की।